Saturday, July 30, 2011

शाम भी चुपचाप सी रहती है..

दिनभर की धूप में जलकर सुस्त पड़ी सडकों को देखते हुए, शाम भी कुछ चुपचाप सी रहती है।
सूने किसी घर में, तनहा जलती हुई इक शमा की तरह, दिल में भी कुछ आग सी रहती है।

सुन्न हो गये कानों के परदे, झुकीसी आंखे और दबी सी सांसो में भी कोई जिंदगी सी रहती है।
इस शोर से छुपती छुपाती, दिल के अंधे गलियारों में, सेहमी सी कोई, दिल्लगी सी रहती है।

इक आह लबों के दायरे के भीतर रहती है, उनकी बेज़ार निगाहों में कुछ धुंद सी रहती है।
ऐसे रहती है इक कसक सी सीने में बेचैन, जैसे पैमानों में कुछ आग सी रहती है।

किसीकी झूठी प्यास बुझाती हुई, खुद प्यासी रह जाती है, ये मै भी अब 'नादान' सी रहती है।
इस महफ़िल में भीड़ का दिल बहलाती हुई, ये मधुशाला भी अब वीरान सी रहती है।

- मेरी नादानगी.

Thursday, July 28, 2011

ये दुनिया अभी दिवानी है।

इश्क की बस यही रस्म है, कि हर रस्म अभी ठुकरानी है,
ज़माने से नहीं मानी ये दुनिया, ये दुनिया अभी दिवानी है।

आफताब से कह दो कि थोडी देर तो रुक जाए,
शब-ए-ख़्वाब-ए-वस्ल की ये घड़ी अभी सुहानी है।

साँसो का बस चलते रहना काफी नहीं होता,
बुझते चरागों से भी, ज़िंदगी अभी चुरानी है।

हर शक्स खोया है अपने जुनून-ए-वजूद में,
जहान-ए-मुकम्मल में अभी विरानी है।

जहान-ए-ख़ाक में दिल के बहलाने के बहाने है बहुत,
नयी नयी बहारों में ये विरानगी अभी पुरानी है।

तुम जानते हो इन जूद-पशेमा राहों को नादान,
दर-ए-मंझिल की फिर तलब अभी नादानी है।

- मेरी नादानगी.