Friday, December 07, 2012

चाशनी..

निगाहो में जिसके सहर रहती है, वो रोशनी हो तुम,
लबों से लब्ज़ो में मिठास भरती है, वो चाशनी हो तुम..

मासूम वक़्त को फिर ले आती, एक सुहानी मुस्कान हो तुम,
कभी सयानी, कभी दिवानी, कभी लगती नादान हो तुम..

पेड़ के हर पत्ते से बचकर मुझे छुने आयी, एक अनछुई किरन हो तुम,
कभी पत्थरों में फुलों की उम्मीद जगाती, बारिश की पहली सीलन हो तुम..

जिसने मेहकाया है इस गुलशन को आजकल, वो संदल हो तुम,
मेरी कलम से शरारत करती, पर्दानशी, हसीन गज़ल हो तुम..

जहाँ मेरे साथ थम गया था वक़्त, उस मोड पर मिले हो तुम,
शायद वक़्त को इंतजार था तुम्हारा, इससे पहले भी कहीं मिले हो तुम..

- मेरी नादानगी

Friday, October 26, 2012

हम तो फिरभी शराब पीते हैं

लोग लोगों का खून पीते हैं..
हम तो फिरभी शराब पीते हैं...

यूं तो वो हमें बड़ा झूठा कहते हैं..
और खुद कहते हैं कि खुशीसे जीते हैं..

उन्हें दीवारों का शौक़ बड़ा है..
हम तो आसमां भी हटाके जीते हैं..

वो बेखबर जाम भरते रहते हैं..
हम तो उनकी निगाहों से पीते हैं..

यूं तो रोज थोडा थोडा मरते हैं..
जीते हैं मगर जबभी पीते हैं..  

हम उन ज़ख्मों को अक्सर गिनते हैं..
जिन्हे वो माफी के धागों से सीते हैं..

जीते हैं कि जिंदा हैं इसलिए नादान..
वरना कौन बताए कि क्यों जीते हैं..

- मेरी नादानगी.

Sunday, January 22, 2012

Red

Running through my veins,
Finding space to breathe,
Within my embrace..
You are painting me red...
-Rahul.