Tuesday, October 06, 2015

और कुछ?

डर कमजोरी से नही दोस्त
अपनी ताकद से लगता है..
अक्सर ताकद या तो बोझ उठाने के लिए होती है
या कुछ तोड़ने के काम आती है
वरना जोडने के लिए तो बस प्यार ही काफी है

डर बेमानी से नही दोस्त
वादों से लगता है..
बेमानी तो फिर भी पीछे छूट जाती है
टूटे हुए वादे
अक्सर पैरों में चुभते रहते हैं

डर रास्तों से नही दोस्त
मंंज़िलों से लगता है
रास्ते तो हर सुख दुख के साथी हैं
उंचे नीचे हर कदम पर साथ हैं
वह मंज़िल है कि पराई है
न जाने वहां धूप है या कोई परछाई है
वो है भी या है ही नही..

आंसू अच्छे हैं
बहते हैं तो काफी कुछ साफ कर देेते हैं
धुंधली आंखो से लेकर, मन के काले बादलों तक
और रह जाता है एक भीगा बिल्ला जवाब
जब आवाज़ आती है..
और कुछ?