इश्क की बस यही रस्म है, कि हर रस्म अभी ठुकरानी है,
ज़माने से नहीं मानी ये दुनिया, ये दुनिया अभी दिवानी है।
आफताब से कह दो कि थोडी देर तो रुक जाए,
शब-ए-ख़्वाब-ए-वस्ल की ये घड़ी अभी सुहानी है।
साँसो का बस चलते रहना काफी नहीं होता,
बुझते चरागों से भी, ज़िंदगी अभी चुरानी है।
हर शक्स खोया है अपने जुनून-ए-वजूद में,
जहान-ए-मुकम्मल में अभी विरानी है।
जहान-ए-ख़ाक में दिल के बहलाने के बहाने है बहुत,
नयी नयी बहारों में ये विरानगी अभी पुरानी है।
तुम जानते हो इन जूद-पशेमा राहों को नादान,
दर-ए-मंझिल की फिर तलब अभी नादानी है।
- मेरी नादानगी.
2 comments:
Very nice :)
@linusvanpelt, शुक्रिया!
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