Friday, December 07, 2012

चाशनी..

निगाहो में जिसके सहर रहती है, वो रोशनी हो तुम,
लबों से लब्ज़ो में मिठास भरती है, वो चाशनी हो तुम..

मासूम वक़्त को फिर ले आती, एक सुहानी मुस्कान हो तुम,
कभी सयानी, कभी दिवानी, कभी लगती नादान हो तुम..

पेड़ के हर पत्ते से बचकर मुझे छुने आयी, एक अनछुई किरन हो तुम,
कभी पत्थरों में फुलों की उम्मीद जगाती, बारिश की पहली सीलन हो तुम..

जिसने मेहकाया है इस गुलशन को आजकल, वो संदल हो तुम,
मेरी कलम से शरारत करती, पर्दानशी, हसीन गज़ल हो तुम..

जहाँ मेरे साथ थम गया था वक़्त, उस मोड पर मिले हो तुम,
शायद वक़्त को इंतजार था तुम्हारा, इससे पहले भी कहीं मिले हो तुम..

- मेरी नादानगी

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